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contest : हिंदी दिवस पर पखवारा के आयोजन का कोई औचित्य है या यू ही चलता रहेगा यह सिलसिला

tulip
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हिंदी दिवस पर पखवारा का आयोजन किया जाना आवश्यक ही नहीं बल्कि परमावश्यक है और ये सिलसिला तबतक चलता रहना चाहिए जबतक इसका कोई ठोस समाधान न निकल जाय . हिंदी हमारी मातृभाषा सरल , सरस ,प्रभावपूर्ण , प्रखर और लोकप्रिय है . पर विडंबना तो देखिये अपनों की उपेक्षा का दंश झेल रही है . ये गंभीर प्रश्न और चिंता का विषय है . अतः गहन चिंतन की आवश्यकता है . इसके लिए एक मन, एक भाव और एक मंच हो, जहाँ गोष्ठिया , वार्तालाप और सार्थक विचार विमर्श से निश्चित रूप से सकारात्मक समाधान निकलेगे . यह तभी संभव है जब हिंदी दिवस को बहुत उत्साह से मनाया जाये .
नकारात्मक सोच रखने वाले यह कहने में बिलकुल नहीं चुकते कि ये सब बस एक दिखावा और आडम्बर है . इसे पूरी तरह झुठलाया भी नहीं जा सकता . लोगो की कथनी और करनी में विरोधाभास देखा गया है . मेकाले सरीखे लोगो की बदनियती हिंदी के अस्तित्व को मिटाने का दुस्साहस करती आ रही है लेकिन उनकी ऐसी हरकत कभी कामयाब नहीं हो सकती . कोई भी नकरात्मक सोच हिंदी पर ग्रहण नहीं लगा सकता .
देश का हित हिंदी के उत्थान से जुड़ा है , यह एक शाश्वत सत्य है . आयोजन का उदेश्य निश्चित रूप से व्यवस्थित और ईमानदारी पूर्वक होना चाहिए . हिंदी दिवस के चहुमुखी विकास में पखवारा मनाना हिंदी रूपी पौधा को उर्वरक भूमि , समुचित खाद , पानी और प्रकाश देने जैसा कार्य करता है . और ये पखवारा सकारात्मक विचारो को एक सुनहरा अवसर और जागरूकता प्रदान करता है .एक स्वस्थ सोच को एक उचित पृष्ठभूमि मिलती है . सही दिशा निर्देश से रूप – रेखा तैयार होगी और इन सब से निकलकर आएगी हिंदी को अपनाने की अद्भ्य चाहत .
हिंदी को उच्च शिक्षा का माध्यम बनाना, तकनिकी क्षेत्र, विज्ञानं आदि क्षेत्रो में विस्तार देना हम भारतीयों का कर्तव्य बनता है क्योंकि हिंदी स्वंय ही बहुत वैज्ञानिक भाषा है . हिंदी को उसका उचित स्थान और उपयोगिता से अवगत हम मिल बैठ कर ही कर सकते है इसके लिए हिंदी दिवस को मानना और भी महत्वपूर्ण हो जाता है .
जाने अनजाने में हिंदी अपनों द्वारा ही उपेछित की जाती रही है . इसकी उपेछा कर के हमने विश्व पटल पर अपना आत्मसम्मान ही खोया है. इन सब बातो से हमें उबरना है . हमारी एकजुटता हिंदी को फिर से अपने स्वर्ण युग में ले जायेगी . वर्तमान में किया गया प्रयास , संघर्ष , भविष्य में प्रकाश के आगमन का संकेत दे देता है . हिंदी दिवस पर आयोजित ऐसी प्रतियोगिता भी एक कारगर कदम है . हिंदी के प्रचार प्रसार में टीवी, मीडिया और हिंदी सिनेमा जगत बखूबी अपनी भूमिका निभा रहा है .
अंत में कहना चाहुगी हिंदी पखवारे से ही वो मुहीम निकल कर आयेगी जो हिंदी से जुडी सारे पूर्वग्रहों का अंत करेगी . मानसिक दासता से मुक्त करेगी और यह सिलसिला निरंतर चलता रहे, मार्ग प्रशस्त करता रहे ताकि हिंदी का स्वाभिमान अक्षुण रहे .
जय हिन्द जय हिंदी .

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